शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

भूलना मेरी आदत नहीं

लोग अक्सर भूल जाते हैं किसी का भला सा नाम, पर
भूल जाता हूँ मैं वह सब कुछ
जो याद नहीं करना चाहता, पर
भूलना मेरी आदत नहीं
आदत तो याद न कर पाने कि है
भूल तो मैं बस यूँ ही जाता हूँ


किसी का कहा हुआ सबसे पहले भूलता हूँ, फिर
उसका परिचय, फिर खुद उसी को
यकीन मानिये याद करके नहीं भूलता मैं
बस भूल जाता हूँ
यहाँ तक कि मैं चेहरे भी भूल जाता हूँ  या फिर
सभी भूल गए चेहरों में से कोई एक चेहरा
याद नहीं कर पता
पढ़ा हुआ भी भूल सा ही जाता हूँ, फिर
भूल जाता हूँ कि कब और कहाँ भूला था, पर


मैं सब कुछ नहीं भूलता
दिखने वाली तमाम चीजों में, जिसे देख पाता हूँ
वे कुछ - कुछ याद रह जाती हैं, जैसे
याद रह जाती है  भूल गए किसी चेहरे पर कटे का कोई निशान,या
भूल चुके किसी की आवाज़
( जिसमे शब्द या वाक्य नहीं )
भूल गए किसी किताब के पन्ने का पीलापन, या
छपे हुए अक्षरों पर अचानक रेंगती चली आने वाली चांदी कि मछली, या
पढ़ते - पढ़ते उभर आया कोई दृश्य ...............! पर




यह भूलना सुखद ही लगता है कई बार, क्योंकि
हर बार नयेपन के सुख से भर उठता हूँ, यूँ कि
पीते हुए पानी हर बार लगता एकदम नए घड़े का
हर बार एकदम नया सा आदमी, यूँ कि
हर बार देख ली हो कोई अदेखी चीज, यूँ कि
हर बार कुछ नया जान लेने का रहस्य



हर बार पहले - पहले का सुख  !

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