शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

दोस्त के नाम निमंत्रण पत्र

आओ दोस्त! बैठो
लेते हुए चाय की दो दो चुस्कियां
बाँटते हैं अपने अपने अनुभव,किस्से और सपने
इससे पहले की
अनुभव,बाँटते बाँटते बंट जाए
किस्से, सुनाते सुनाते
हो जायें बासी और सपने देखते- देखते
सपने बन जायें
आओ दोस्त!!!!!
आओ दोस्त ! एक बार फिर
तय करते हैं वो सफर
जिस पर सीखा था हमने
चलना और चलना
ऐसे, जैसे
हमेशा चलते ही रहना हो
राह की धूल, गंध , रंग समेटे
वहां तक जहाँ
अगला तिराहा पड़ता है
जो साक्छी है उस वादे का, की
जब -जब भूल जायेंगे हम
चलना
शुरू करेंगे सफर , फिर वहीं से
तो आओ दोस्त !!!!

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