गुरुवार, 19 मार्च 2009

रंग और सोमुदा

रंग गाढ़े हो जाते हैं
सोमूदा के हाथों में आकर
रंगों को हल्के में नहीं लेते वो
रंग उनके लिए सपने नहीं
हकीकत हैं
दुनिया देखते हैं वो इन चटख रंगों में
यहाँ आते ही असमान हो जाता है
गाढ़ा नीला
और सुर्ख लाल हो उठते हैं प्रभाकर
उठने से पहले कूची
गाढ़ा कर जाती है पन्नों को
सूर्य से चलकर उनकी आँखों तक
आने से पहले रोशनी
बिखर जाती है
इन्द्रधनुष से भी ज्यादा रंगों में
सबसे ज्यादा गाढ़े अंधेरे के रंग में भी
कुछ दिखता है सोमूदा को
काला रंग
बयां करता है यहाँ खूबसूरती
जीवन की
खूब गाढ़े रंगों से रंगी दुनिया के बीच
यहाँ मानव काला ही दिखता है
लोगों को भी सोमूदा शायद
रंगों से ही पहचानते हैं, और
व्यथित हो उठते हैं मिलकर
किसी बेमेल रंग से
लेकिन सुख-दुःख के खूब गाढ़े रंग जब छलकते हैं
तो सोमूदा पानी में घोलते हैं
थोड़ा सा नमक, थोड़ी सी नींबू
संवेदनाओं के खूब गाढ़े रंगों से
बने हैं सोमूदा

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