बुड्ढी होते ही अम्मा
चिल्लाती दिन रात
चिल्लाती दिन रात न कोई सुनता उनकी बात
जाने क्या अनाप- शनाप बकती रहती हैं
चुप होती हैं
द्वार- पार एकटक बस देखा करती हैं
हर घर की हर बूढी शायद
ऐसी ही होती हैं
दालान में रखी कुर्सी भी बैठते ही जैसे
करह उठती है
आती हैं आवाजें कुछ
घर की हर बूढी चीजों से
पंखों से, पलंग से, साईकिल से , नल से , दरवाजों से
और
बूढी हो चुकी रीति रिवाजों से
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