गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

उसका मेरा रिश्ता

इंतजार है की कोई पूछे मुझसे
"अभी अभी किससे बातें कर रहे थे
जबकि एकदम अकेले थे तुम
आकाश के बीचो बीच "
मैं भी बताना चाहता हूँ कि
आकाश में घुमड़ते बादलों के टुकडों में भरे
पानी कि थाह ले रहा था , लेकिन
कहता हूँ मैं ," नहीं ,कुछ नहीं ............बस ऐसे ही !
लगता है बह जायेगी कहानी
भीगे बादलों कि, सुनाते ही
बादलों में भरे अपने हिस्से का पानी
बचाने को स्वार्थी हों उठता हूँ
इस डर से कि कहीं ख़त्म न हों जाए
मेरा , बादल और पानी का रिश्ता
नहीं सुना सकता पानी से भरी कोई कहानी
या शायद , सुनाने कि बेचैनी है जिसे
उसे पहले से पता है ,बादलों में है कितना पानी
और
शायद मुझसे भी पुराना है रिश्ता , उसका
हवा से , ऊष्मा से, बादलों से,पानी से

2 टिप्‍पणियां:

  1. namaskar mitr,

    main bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon .. aap bahut accha lihte hai .. man ko chooti hui bhaavnaye shabd chitr ban jaate hai .. ye kavita mujhe bahut acchi lagi ..

    badhai sweekar karen

    dhanywad,
    vijay

    pls read my new poem :

    http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html

    जवाब देंहटाएं