मंगलवार, 9 जून 2009

तनवीर , मनवीर , कर्मवीर ...........या हबीब

भोपाल आने के बाद कुछ -एक बड़ी उपलब्धियों में से एक रहा हबीब तनवीर निर्देशित "चरण दास चोर " देखना और ख़ुद हबीब तनवीर से मिलना। मुझे जरा भी आशा नहीं थी कि तनवीर साहब भी आएंगे और आश्चर्य से तब ऑंखें खुली रह गयीं जब तनवीर साहब को वृद्धावस्था की इस अवस्था में वहाँ उपस्थित देखा । अपने अन्तिम नाट्य महोत्सव में तनवीर साहब ने रंगमंच की सबसे सशक्त माध्यमगत टिप्पडी की "अभिनेता रंगमंच का तानाशाह होता है ,मंच पर आते ही निर्देशक की डोर छूट जाती है । निर्देशक दूध में पड़ी मक्खी की तरह फ़ेंक दिया जाता है "। परन्तु एक निर्देशक ऐसा है जिसकी डोर कभी नही छूटती -'उपरवाला'। अधिकतर अभिनेता इस निर्देशक के डोर पर ही नाचते रह जाते हैं । बहुत कम ऐसे अभिनेता हुए जो इस डोर में बंधे रहने के बावजूद अपने अभिनय की नई इबारत लिखते हैं । ऐसे ही लोगों में एक थे तनवीर साहब ।
हबीब तनवीर की जैसी भव्य सख्शियत मेरे जहन में थी उसमे उनका वृद्ध शरीर फिट नही हो रहा था लेकिन वास्तव में महानता शरीर की मोहताज़ नही होती । उन्हें देखकर उस दिन लगा था की वे सिर्फ़ तनवीर ही नही है बल्कि मनवीर और कर्मवीर भी थे । मैं सिर्फ उन्हें नमन कर सकता हूँ ।

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