गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

अनुपस्थित से भाव

कुछ चीजें होकर भी नहीं होती हैं, वे होती हैं चुप चाप, गुमनाम सी बिना किसी उपस्थिति के आभास के.उनकी उपस्थिति हमें अचानक पाता चलती है.
बिजली के तार तो उपस्थित रहते हैं पर उसमे करंट अनुपस्थित सा उपस्थित रहता है . तार, करंट के उपस्थित रहने या अनुपस्थित रहने, दोनों ही स्थितियों में एक सी रहती है. शांत, स्थिर सी तार में कुछ बड़े वेग से बहता रहता है, तार नहीं बहता.
हलकी ठण्ड और गर्मी का आभास भी चीजों में छुपकर, दुबककर इस तरह अनुपस्थित सी उपस्थित रहती है कि वास्तु  को देखकर पाता ही नहीं चल सकता कि वाह हलकी ठण्ड है या हलकी गर्म.
कई बार लगता है कि हमारे चारो ओर अनुपस्थित से सुख और दुःख भी निरंतर बहते रहते हैं. इधर उधर मुड़ने में कहीं सुख छू गया तो सुखी हो लिए और दुःख छू गया तो दुखी हो लिए. हाँ कई बार दुःख ज्यादा देर तक बहता रहता है या बहुत बाद तक उसकी टीस बनी रहती है.  
कई बार कुछ लोगों के चेहरे पर भाव भी इसी तरह अनुपस्थित से रहते हैं. पर उन्हें भावहीन नहीं कहा जा सकता. भाव वहां होते जरुर होंगे पर देखकर पाता नहीं लगाया जा सकता, यूँ लगता है जैसे वे भावशून्य हो गए हों. अगर कभी ऐसा चेहरा देखना हो तो किसी भव्य समारोह में किसी बड़े राजनयिक के हाथों सम्मानित होते  किसी आदिवासी को देखिये, शायद कोई अनुपस्थित सा भाव उपस्थित सा दिख जाये, तो मुझे भी जरुर बताइयेगा.
मुझे पूरा विश्वास है कि उन तमाम चेहरों के पीछे भाव, तार में उपस्थित करंट कि भांति वेगवान, उग्र और झकझोर देने वाले होते होंगे, बशर्ते कोई उन्हें छू सके.
  

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...

    http://charchamanch.uchcharan.com

    वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ..
    .

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  2. मुझे पूरा विश्वास है कि उन तमाम चेहरों के पीछे भाव, तार में उपस्थित करंट कि भांति वेगवान, उग्र और झकझोर देने वाले होते होंगे, बशर्ते कोई उन्हें छू सके.

    सही कहा ……………भाव अनुपस्थित होकर भी उपस्थित होते है बशर्ते कोई पढने वाली आँख हो।

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  3. बहुत ही अच्छा.....मेरा ब्लागः-"काव्य-कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ ....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

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