शनिवार, 11 अप्रैल 2009

मेट्रो उवाच ओनली वाच

दोस्त पहचाना मुझे ? पूछते ही
सिकुड़ गई आँखें सड़कों की
और हंसने लगे सभी
निकलकर पोस्टरों से
रोड लाइट , इमारतों ने बिचकाए होंठ
चौराहे पर खड़े महाराणा प्रताप ने भी ऐंठी मूछें
गले में ' प्रवेश वर्जित ' की
तख्ती लटकाए गलिओं के साथ
सबने मिलकर किया ऐलान
कोई ऐसे सवाल हमसे न पूछे

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

उसका मेरा रिश्ता

इंतजार है की कोई पूछे मुझसे
"अभी अभी किससे बातें कर रहे थे
जबकि एकदम अकेले थे तुम
आकाश के बीचो बीच "
मैं भी बताना चाहता हूँ कि
आकाश में घुमड़ते बादलों के टुकडों में भरे
पानी कि थाह ले रहा था , लेकिन
कहता हूँ मैं ," नहीं ,कुछ नहीं ............बस ऐसे ही !
लगता है बह जायेगी कहानी
भीगे बादलों कि, सुनाते ही
बादलों में भरे अपने हिस्से का पानी
बचाने को स्वार्थी हों उठता हूँ
इस डर से कि कहीं ख़त्म न हों जाए
मेरा , बादल और पानी का रिश्ता
नहीं सुना सकता पानी से भरी कोई कहानी
या शायद , सुनाने कि बेचैनी है जिसे
उसे पहले से पता है ,बादलों में है कितना पानी
और
शायद मुझसे भी पुराना है रिश्ता , उसका
हवा से , ऊष्मा से, बादलों से,पानी से